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Showing posts from December 6, 2009

जानिए कहाँ खर्च होगा आपका धन

द्वितीय भाव धन व आर्थिक स्थिति को बताता है। इससे परिवार सुख व पैतृक संपत्ति की भी सूचना मिलती है। द्वितीय भाव में जो राशि होती है, उसका स्वामी द्वितीयेश कहलाता है। इसे धनेश भी कहते हैं। 1. धनेश लग्न में होने से परिवार से प्रेम रहता है, आर्थिक व्यवहार में पटुता हासिल होती है। 2. धनेश धन स्थान में हो तो परिवार का उत्कर्ष होता है व आर्थिक स्थिति हमेशा अच्‍छी रहती है। 3. धनेश तृतीय में हो तो भाई-बहनों की उन्नति व लेखन से आर्थिक लाभ का सूचक है। 4. धनेश चतुर्थ में हो तो माता-पिता से सतत सहयोग व लाभ मिलता है, चैन से जीवन बीतता है। ND5. धनेश पंचम में हो तो कला से धनार्जन, संतान के लिए सतत खर्च करना पड़ता है। 6. धनेश षष्ठ में हो तो कमाया गया धन बीमारियों के लिए खर्च होता है, अतिविश्वास से धोखा होता है। 7. धनेश सप्तम में हो तो पत्नी/पति व घर के लिए ही सारा धन खर्च होता रहता है। 8. धनेश अष्टम में हो तो गलत तरीके से पैसा कमाने की वृत्ति रहती है व उससे आरोप-प्रत्यारोप लगते हैं। 9. धनेश नवम में हो तो आर्थिक योग उत्तम, व्यवसाय के लिए दूर की यात्रा के योग आते हैं। 10. धनेश दशम में होने पर नौकरी से लाभ

रामशलाका

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जीवन में कई बार ऐसे मौके आते हैं जब समझ नहीं आता कि क्या करें और क्या न करें? इस भटकाव से उबरने के लिए श्रीराम शलाका प्रश्नावली के रूप में एक कीमती कुंजी हमें परंपरा से प्राप्त हुई है। इसकी उपयोग_विधि बेहद सुगम है। सबसे पहले भगवान श्रीरामचंद्रजी का श्रद्धापूर्वक ध्यान करें और उस प्रश्न के बारे में सोचें, जिसपर प्रभु का मार्गदर्शन पाने की इच्छा हो। फिर नीचे दी गई चौखट के भीतर किसी भी जगह पर कर्सर को ले जाकर आंख मूंदकर क्लिक करें। कुछ ही पलों में आपके क्लिक के अनुरूप, रामशलाका प्रश्नावली की नौ चौपाइयों में से किसी एक के आधार पर समाधान मिल जाएगा।

सूर्य-शनि युति : जीवन को संघर्षमय बनाती है

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सूर्य और शनि पिता-पुत्र होने पर भी परस्पर शत्रुता रखते हैं। वैसे भी प्रकृति का विचार करें तो ज्ञान और अंधकार साथ मिलने पर शुभ प्रभाव अनुभूत नहीं होते। सूर्य-शनि युति प्रतियुति जीवन को पूर्णत: संघर्षमय बनाते हैं। विशेषत: जब यह युति लग्न, पंचम, नवम या दशम में हो व दोनों (सूर्य-शनि) में से कोई ग्रह इन भावों का कारक भी हो तो यह योग जीवन में विलंब लाता है। बेहद मेहनत के बाद, समय बीत जाने पर सफलता आती है। पिता-पुत्र में मतभेद हमेशा बना रहता है और दूर रहने के भी योग बनते हैं। सतत संघर्ष से ये व्यक्ति निराश हो जाते हैं, डिप्रेशन में भी जा सकते हैं। यदि शनि उच्च का हो व कारक हो तो 36वें वर्ष के बाद, अपनी दशा-महादशा में सफलता जरूर देता है। यह युति होने पर व्यक्ति को सतत परिश्रम के लिए तैयार रहना चाहिए, पिता से मतभेद टालें, ज्ञानार्जन करें, आध्यात्मिक साधना से अपना मनोबल मजबूत करना चाहिए। सूर्य व शनि शांति के अन्य उपाय करते रहें।