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Showing posts from December 14, 2014

कर्म करो और फल की चिंता मत करो

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आज से लगभग पांच हजार वर्ष पूर्व मार्गशीर्ष माह की शुक्ल एकादशी को महाभारत युद्ध में कुरुक्षेत्र की युद्धभूमि पर अर्जुन ने हथियार डाल दिए थे और श्रीकृष्ण से कहा था कि प्रभु मेरे सामने सभी भाई-बंधु, गुरु आदि खड़े हैं और मैं इन पर वार नहीं कर सकता। मैं युद्ध से हट रहा हूं। अर्जुन के इस तरह कर्म से विमुख होकर मोह में बंधने को श्रीकृष्ण ने अनुचित ठहराया। अर्जुन युद्ध के लिए तैयार हो जाएं व सत्य को जान जाएं इस अभिप्राय से श्रीकृष्ण ने उन्हें कुछ उपदेश दिया था। यही उपदेश गीता है। गीता के जीवन-दर्शन के अनुसार मनुष्य महान है, अमर है, असीम शक्ति का भंडार है। गीता को संजीवनी विद्या की संज्ञा भी दी गई है। मनुष्य का कर्तव्य क्या है? इसी का बोध कराना गीता का परम लक्ष्य है। श्रीकृष्ण के इस उपदेश के बाद ही अर्जुन अपना कर्तव्य पहचान पाए थे, फलस्वरूप उन्होंने युद्ध किया, सत्य की असत्य पर जीत हुई और कर्म की विजय हुई। गीता में कुल 18 अध्याय हैं और महाभारत का युद्ध भी 18 दिन ही चला था। गीता में कुल सात सौ श्लोक हैं। गीता में ज्ञान को सर्वोच्च स्थान दिया गया है। ज्ञान की प्राप्ति से ही मनुष्य की

मोक्ष प्राप्ति की चार गतियों

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(1) नरक गति : जीवन में किए गए अपने बुरे कर्मों के कारण जीव नरक गति प्राप्त करता है। इस पृथ्वी के नीचे सात नरक हैं, जिनमें जीव को अपनी आयुपर्यंत घनघोर दुखों को सहन करना पड़ता है। (2) तिर्यंच गति : जीव को अपने कर्मानुसार जो दूसरी गति प्राप्त होती है वह है तिर्यंच गति। अत्यधिक आरंभ परिग्रह, चार कषाय अर्थात क्रोध, मान, माया, लोभ एवं पांच पापों अर्थात हिंसा, झूठ, चोरी, कुशील एवं परिग्रह में निमग्न रहने वाले जीव को तिर्यंच गति अर्थात वनस्पति से लेकर समस्त जीव जाति तथा गाय, भैंस, हाथी, घोड़ा, पक्षी आदि गति प्राप्त होती है। (3) मनुष्य गति : तीसरी गति मनुष्य गति होती है। जो जीव कम से कम पाप करता हुआ निरंतर धर्म-ध्यान में जीवन व्यतीत करता है। उसे मनुष्य गति प्राप्त होती है। समुद्र में फेंके गए मोती को जैसे प्राप्त करना दुर्लभ है, उसी प्रकार यह मानव जीवन भी महादुर्लभ है, जिसको पाने के लिए देवता भी तरसते हैं। (4) देव गति : चौथी गति देव गति होती है। इस पृथ्वी के ऊपर 16 स्वर्ग हैं। जीव अपने कर्मानुसार उन स्वर्गों में कम या अधिक आयु प्रमाण के लिए जा सकता है। इसको पाना अत्यंत ही दुष्कर है। निरंतर

गाय को देवी का दर्जा प्राप्त है

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भारत में गाय को देवी का दर्जा प्राप्त है। गाय के भीतर देवताओं का वास माना गया है। दिवाली के दूसरे दिन गोवर्धन पूजा के अवसर पर गायों की विशेष पूजा की जाती है और उनका मोर पंखों आदि से श्रृंगार किया जाता है। पुराणों के अनुसार गाय में सभी देवताओं का वास माना गया है। गाय को किसी भी रूप में सताना घोर पाप माना गया है। उसकी हत्या करना तो नर्क के द्वार को खोलने के समान है, जहां कई जन्मों तक दुख भोगना होता है। अथर्ववेद के अनुसार- 'धेनु सदानाम रईनाम' अर्थात गाय समृद्धि का मूल स्रोत है। गाय समृद्धि व प्रचुरता की द्योतक है। वह सृष्टि के पोषण का स्रोत है। वह जननी है। गाय के दूध से कई तरह के प्रॉडक्ट (उत्पाद) बनते हैं। गोबर से ईंधन व खाद मिलती है। इसके मूत्र से दवाएं व उर्वरक बनते हैं। गाय का रहस्य- गाय इसलिए पूजनीय नहीं है कि वह दूध देती है और इसके होने से हमारी सामाजिक पूर्ति होती है, दरअसल मान्यता के अनुसार 84 लाख योनियों का सफर करके आत्मा अंतिम योनि के रूप में गाय बनती है। गाय लाखों योनियों का वह पड़ाव है, जहां आत्मा विश्राम करके आगे की यात्रा शुरू करती है। वैज्ञानिक कहते हैं कि