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Showing posts from July 19, 2009

जालौर दुर्ग ( देवासी जाती की पेचान )

जालौर दुर्ग मारवाड़ का सुदृढ़ गढ़ है। इसे परमारों ने बनवाया था। यह दुर्ग क्रमश: परमारों, चौहनों और राठौड़ों के आधीन रहा। यह राजस्थान में ही नही अपितु सारे देश में अपनी प्राचीनता, सुदृढ़ता और सोनगरा चौहानों के अतुल शौर्य के कारण प्रसिद्ध रहा है। जालौर जिले का पूर्वी और दक्षिणी भाग पहाड़ी शृंखला से आवृत है। इस पहाड़ी श्रृंखला पर उस काल में सघन वनावली छायी हुई थी। अरावली की श्रृंखला जिले की पूर्वी सीमा के साथ-साथ चली गई है तथा इसकी सबसे ऊँची चोटी ३२५३ फुट ऊँची है। इसकी दूसरी शाखा जालौर के केन्द्र भाग में फैली है जो २४०८ फुट ऊँची है। इस श्रृंखला का नाम सोनगिरि है। सोनगिरि पर्वत पर ही जालौर का विशाल दुर्ग विद्यमान है। प्राचीन शिलालेखों में जालौर का नाम जाबालीपुर और किले का नाम सुवर्णगिरि मिलता है। सुवर्णगिरि शब्द का अपभ्रंशरुप सोनलगढ़ हो गया और इसी से यहां के चौहान सोनगरा कहलाए। जहां जालौर दुर्ग की स्थिति है उस स्थान पर सोनगिरि की ऊँचाई २४०८ फुट है। यहां पहाड़ी के शीर्ष भाग पर ८०० गज लम्बा और ४०० गज चौड़ा समतल मैदान है। इस मैदान के चारों ओर विशाल बुजाç और सुदृढ़ प्राचीरों से घेर कर दुर्ग का निर्म

रबारी देवासी रायका समाज राजस्थान

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राजस्थान में पुरातन काल से 'सवा सेर सूत' सिर पर बांधने का रिवाज एक परम्परा के रुप में आज दिन तक प्रचलित रहा है। पाग व पगड़ी मनुष्य की पहचान कराती है कि वह किस जाति, धर्म, सम्प्रदाय, परगना एवं आर्थिक स्तर का है। उसके घर की कुशलता का सन्देश भी पगड़ी का रंग देती है। मारवाड़ में तो पाग पगड़ी का सामाजिक रिवाज आदि काल से प्रचलित रहा है। ऐसा कहा जाता है कि राजस्थान में १२ कोस (करीब ३६ कि.मी.) पर बोली बदलती है, उसी प्रकार १२ कोस पर साफे के बांधने के पेच में फरक न आता है। प्रत्येक परगने में विभिन्न जातियों के पाग-पगड़ियों के रंगों में, बांधने के ढंग में एवं पगड़ी के कपड़े में विभिन्नता होती है। राजस्थान में पगड़ी के बांधने के ढंग, पेच एवं पगड़ी की कसावट देख कर बता देते हैं कि वह व्यक्ति कैसा है ? अर्थात् पाग-पगड़ी मनुष्य की शिष्टता, चातुर्य व विवेकशीलता की परिचायक होती है। राजस्थान में पगड़ी सिर्फ खूबसूरत एवं ओपमा बढ़ाने को नहीं बांधते हैं बल्कि पगड़ी के साथ मान, प्रतिष्ठा, मर्यादा और स्वाभिमान जुड़ा हुआ रहता है। पगड़ी का अपमान स्वयं का अपमान माना जाता है। पगड़ी की मान की रक्षा के कारण तो पुराने समय

कभी धूप तो कभी छांव सांचोर जालोर

जालोर। जिले भर में सोमवार को दिन भर कभी धूप तो कभी छांव का दौर जारी रहा। जिससे मौसम सुहाना हो गया। जिला मुख्यालय पर दिन भर आकाश में बादलों की आवाजाही रही। अल सुबह करीब आधे घंटे के लिए रिमझिम बारिश का दौर चला। दिन में भी कुछ समय के लिए हल्की बौछारें पड़ी। जिले के रानीवाड़ा, आहोर व बागरा क्षेत्र के कुछ गांवों में दिन में रूक-रूक कर हल्की बारिश हुई। भीनमाल व सांचौर क्षेत्र में सोमवार को दिन भर आकाश में बादलों की आवाजाही लगी रही शाम को बूंदाबांदी हुई। कभी धूप तो कभी छांव की स्थिति बनी, जिससे मौसम खुशगवार हो गया। हालांकि भीनमाल में रविवार रात बारिश हुई। सोमवार दोपहर के समय धूप खिलने से लोगों को परेशानी का सामना करना पड़ा। सोमवार सुबह आठ बजे तक सबसे अधिक बारिश आहोर में 4.8 मिलीमीटर दर्ज की गई। जालोर में 3.6 मिलीमीटर बारिश हुई। आहोर। कस्बे समेत क्षेत्रभर में सोमवार को रिमझिम बारिश का सिलसिला जारी रहा। पूर्व के दो दिन सूखे निकलने के बाद सुबह रिमझिम का दौर शुरू हुआ, जो रूक-रूककर दिनभर जारी रहा। रानीवाड़ा। कस्बे व आसपास के गांवों में कभी तेज को कभी हल्की बारिश हुई। बारिश के बाद सड़कों पर कीचड़ ज

सांचोर में बारिश का नज़्ज़ारा

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