महा शिवरात्रि व्रत का महात्म्य
फाल्गुन-कृष्ण त्रयोदशी को शिवरात्रि का व्रत होता है। यह शिवजी का अत्यंत महत्वपूर्ण व्रत है और इसीलिए इसे महा शिवरात्रि भी कहते हैं। संपूर्ण भारत में इसका प्रचार है। कहीं-कहीं यह फाल्गुन-कृष्ण चतुर्दशी को भी मनाया जाता है।
इस व्रत के विधान में प्रात:काल स्नानादि से निवृत्त होकर अनशन व्रत रखा जाता है और मिट्टी के बर्तन में जल भरकर ऊपर से बेलपत्र, आक-धतूरे के फूल, अक्षत आदि डालकर शिवजी को चढ़ाया जाता है। यदि आस-पास शिवमूर्ति न हो तो शुद्ध गीली मिट्टी से ही शिवलिंग बनाकर उसे पूजने का विधान है। रात को जागरण करके शिव-पुराण का पाठ सुनना-सुनाना, प्रत्येक व्रती का धर्म माना जाता है। दूसरे दिन प्रात:काल जौ, तिल, खीर तथा बेलपत्र का हवन करके व्रत समाप्त किया जाता है। इसकी कथा लिंग-पुराण में इस प्रकार है-
एक बार कैलाश पर बैठीं हुई पार्वती ने शिवजी से पूछा कि ऐसा कौन-सा व्रत है, जिसके करने से मनुष्य आपके सायुज्य को प्राप्त हो जाता है? यह सुनकर महादेवजी ने कहा कि फाल्गुन-कृष्ण चतुर्दशी को व्रत रहकर प्रदोष-काल में मेरा पूजन करके रात्रि को जो मनुष्य जागरण करता है, वह अनायास ही मेरे सायुज्य को प्राप्त हो जाता है। इतना कहने के पश्चात उन्होंने पार्वती जी को निम्न कथा सुनाई-