मोक्ष प्राप्ति की चार गतियों

(1) नरक गति : जीवन में किए गए अपने बुरे कर्मों के कारण जीव नरक गति प्राप्त करता है। इस पृथ्वी के नीचे सात नरक हैं, जिनमें जीव को अपनी आयुपर्यंत घनघोर दुखों को सहन करना पड़ता है। (2) तिर्यंच गति : जीव को अपने कर्मानुसार जो दूसरी गति प्राप्त होती है वह है तिर्यंच गति। अत्यधिक आरंभ परिग्रह, चार कषाय अर्थात क्रोध, मान, माया, लोभ एवं पांच पापों अर्थात हिंसा, झूठ, चोरी, कुशील एवं परिग्रह में निमग्न रहने वाले जीव को तिर्यंच गति अर्थात वनस्पति से लेकर समस्त जीव जाति तथा गाय, भैंस, हाथी, घोड़ा, पक्षी आदि गति प्राप्त होती है। (3) मनुष्य गति : तीसरी गति मनुष्य गति होती है। जो जीव कम से कम पाप करता हुआ निरंतर धर्म-ध्यान में जीवन व्यतीत करता है। उसे मनुष्य गति प्राप्त होती है। समुद्र में फेंके गए मोती को जैसे प्राप्त करना दुर्लभ है, उसी प्रकार यह मानव जीवन भी महादुर्लभ है, जिसको पाने के लिए देवता भी तरसते हैं। (4) देव गति : चौथी गति देव गति होती है। इस पृथ्वी के ऊपर 16 स्वर्ग हैं। जीव अपने कर्मानुसार उन स्वर्गों में कम या अधिक आयु प्रमाण के लिए जा सकता है। इसको पाना अत्यंत ही दुष्कर है। निरंतर निःस्वार्थ भाव से स्वहित एवं परहित साधने वाला जीव ही देव गति की उच्चतम अवस्था को प्राप्त करता है। इस प्रकार उपरोक्त चारों गतियों से अर्थात 84 लाख योनियों से छुटकारा पाकर ही जीव मोक्ष प्राप्ति कर सकता है अन्यथा नहीं। अतः मानव को इस जीवन में हमेशा पाप कार्यों से निवृत्त रहकर तथा धर्म एवं सद्कर्मों में प्रवृत्त रहकर मोक्ष नहीं तो कम से कम सद्गतियों अर्थात देवगति एवं मनुष्य गति में अगला जन्म हो, ऐसे कार्य करना चाहिए।

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